माना की हैं माटी हम
नहीं हैं फूल गुलाब से
जाना की है मदहोश ज़माना
गुलाब के ही सौरभ से
सुनो पर हम निराश नहीं हैं
डटे रहेंगे विश्वास से
गरजेंगे बस कर्म के बादल
संकल्प हमारा आप से
भीगेगी जब सारी धरती
बरखा की इक फुहार से
महकेगा तब यही ज़माना
सौंधी-सौंधी बहार से
सौरभ सेठिया
३ अप्रैल १९९४
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