जज़बात इतने सूखे क्यों हैं
इन पर घी क्यों न लगाया
इन्हें मुलायम क्यों न बनाया
वाक्यों में लचक नहीं
ख्यालों में चहक नहीं
इनमे मसाला क्यों न मिलाया
इन्हें चटपटा क्यों न बनाया
मुहावरों की खलती है कमी
भावनाओं में नहीं है नमी
अलंकार गए हैं थम
चीनी है ज़रा कम
वाचकजी नमस्कार
ध्यान रखूँगा आपका स्वाद
आलोचना के लिए धन्यवाद
पेश है एक विनम्र प्रतिवाद
तथ्यों की परोसदारी है
दृष्टिकोण से सँवारी है
बेहद पौष्टिक खाना है
हैल्दी फ़ूड का ज़माना है
सौरभ सेठिया
२८ जनवरी २०१०