Thursday, 28 January 2010

आपने पूछा

ये शब्द इतने रूखे क्यों हैं
जज़बात इतने सूखे क्यों हैं
इन पर घी क्यों न लगाया
इन्हें मुलायम क्यों न बनाया

वाक्यों में लचक नहीं
ख्यालों में चहक नहीं
इनमे मसाला क्यों न मिलाया
इन्हें चटपटा क्यों न बनाया

मुहावरों की खलती है कमी
भावनाओं में नहीं है नमी
अलंकार गए हैं थम
चीनी है ज़रा कम

वाचकजी नमस्कार
ध्यान रखूँगा आपका स्वाद
आलोचना के लिए धन्यवाद
पेश है एक विनम्र प्रतिवाद

तथ्यों की परोसदारी है
दृष्टिकोण से सँवारी है
बेहद पौष्टिक खाना है
हैल्दी फ़ूड का ज़माना है

सौरभ सेठिया
२८ जनवरी २०१०

Wednesday, 20 January 2010

राजकमल रिज़ौर्ट घोड़ाझरी

पिछले रविवार मैं एक पिकनिक में शामिल हुआ था.  हम लोग राजकमल रिज़ौर्ट घोड़ाझरी गए थे.  घोड़ाझरी नागपुर से १०५ कि.मी. दूर है.  वहाँ एक झील के किनारे राजकमल रिज़ौर्ट है.  इस रिज़ौर्ट का प्रवेश शुल्क मात्र १० रु. है.  बोटिंग की सुविधा है.  साफ़-सफाई ठीक है.  पिकनिक के लिए बढ़िया है.  सो मैं इसे एक अच्छा पिकनिक स्पौट कहूँगा, रिज़ौर्ट नहीं.  हालाँकि वहाँ रहने की सुविधा भी है.  तीन कमरे हैं, जिनका किराया क्रमशः ४००, ५००, और ६०० रुपये है.  पिकनिक के लिए भी नागपुर से काफी दूर है.  मुझे लगा की ऐसी पिकनिक तो हम अम्बाझरी पार्क में भी कर सकते थे.

रेटिंग: **

Saturday, 16 January 2010

थ्री इडियट्स और बहुत अच्छी बन सकती थी

थ्री इडियट्स में बहुत कुछ बहुत अच्छा था पर कई जगह फिल्म ने मुझे बोर किया.  कई जोक्स बहुत पुराने थे.  विभिन्न किरदारों का बार-बार पैंट उतारना थोड़ा ज्यादा हो गया.  "आल इज वैल" बढ़िया लगा.  हमेशा की तरह बोमन ईरानी ने जोरदार अभिनय किया है.  तीनो इडियट्स अच्छे लगे.  आमीर के कारण फिल्म चल रही है वरना फिल्म की कहानी कुछ ख़ास नहीं है.  फिल्म का सन्देश अच्छा है पर कोई-कोई सीन जरूरत से ज्यादा लंबे खिच गए हैं.  फिल्म में फोटोग्राफी सुंदर है, पर कई जगह सिर्फ अच्छे सीन दिखाने के लिए कहानी को शिमला और लद्दाख ले जाया गया है.

रेटिंग: ***

समीक्षा: पा की कहानी में दम नहीं है

फिल्म पा में कोई कहानी ही नहीं है.  अमिताभ के लिए एक ख़ास किरदार सोचा गया और फिर उसके इर्दगिर्द एक अविश्वसनीय कहानी बुन दी गयी.  कहानी फिर भी छोटी पड़ी तो अभिषेक बच्चन के किरदार को युवा नेता बना कर राजनीती पर टिप्पणियां की गयी जिसका बाकी कहानी से कोई सरोकार नहीं है.  फिर भी फिल्म किसी-ना किसी तरह दर्शकों को बांधे रखती है.  फिल्म अगर डेढ़ घंटे की बनाते तो शायद बहुत अच्छी बनती.  अमिताभ का मेकअप अच्छा है.  अभिनय ठीक है.  कोई शिकायत नहीं पर तारीफ़ करने जैसा भी कुछ नहीं.  अभिषेक और विद्या बालन अच्छे लगते हैं.  परेश रावल का काम ना के बराबर है.

रेटिंग: ***